क्या आप जानते है यह गूढ़ सत्य ? भगवान परशुराम चिरंजीवी है। गायत्रीपरिवार के प्रणेता युग ऋषि श्री रामशर्मा आचार्यजी के गुरु ,जो दादा गुरु के नाम से विख्यात है वो ही स्वयं परशुराम है। कल्कि पुराण में उल्लेखित है की महेन्द्र पर्वत से स्वयं परशुराम कल्कि को अपने पास ले जायेंगे जहाँ पर गायत्री और सावित्री कल्कि का मंजन करेगी। यह महेन्द्र पर्वत ही नंदनवन है जहाँ पर दादागुरुदेव रहते है ,वो ही आचार्यजी को वहाँ पर ले गए और उनको गायत्री व् सावित्री विध्या से दीक्षित किया। परशुरामजी ने ही अपने अवतार कार्य की समाप्ति के पश्चात श्री राम के कहने पर परशु छोड़ फावड़ा पकड़ा था और पर्यावरण संतुलन का कार्य सुरु किया था जिसकी प्रथम कृति है नंदनवन। वहीँ पर वे सूक्ष्म और कारण रूप से दिगंबर स्थिति में निवास करते है ,पर उनके लिए लोकांतर गमन भी सहज है। वे भगवान शिव के अतिप्रिय शिष्यों में से एक है और उन्होंने ही हनुमान ,गणपति ,श्री राम,श्री कृष्णा का जन्म और जीवन देखा है। पृथ्वी की उत्पत्ति से अबतक कुल 5 हिमयुग आ चुके है ,उसमे से अंतिम हिम युग जो Pleistocene Epoch से विख्यात है वो आज से 26 लाख वर्ष पूर्व शुर हुआ था और अब से 11,700 वर्ष पूर्व तक चला था। परशुराम जी इसी दौरान पृथ्वी पर प्रगट हुए थे। हमारे मत से उनकी आयु 18,000 वर्ष से ज्यादा होनी चाहिए अगर पृथ्वी का एक ही प्रिसेसन चक्र गिनती में लेते है तो। अन्यथा उनको फिर 26,000 वर्षो से गुना करते जाना पड़ेगा पर अब तक उसका कोई साहित्यिक ,ऐतिहासिक या वैज्ञानिक प्रमाण नहीं मिल पाया है की ऐसे कितने चक्र हुए । दादागुरु प.पु सर्वेश्वरानन्द ही परशुराम है उनके कई प्रमाण कल्कि पुराण में देखने को मिलते है। यही दादागुरु अर्थात परशुरमजी ने गुजरात के विख्यात संत श्री बापा जलाराम और उनकी धर्मपत्नी वीरबाई माँ को दर्शन दिए थे और उनके द्वारा प्रदत्त अक्षयपात्र सामान जोली और दंड आज भी वीरपुर में द्रस्टव्य है और उसकी कृपा से वहाँ पर अनवरत सदाव्रत चलता रहता है। पिछले सहस्त्रो वर्षो में इन्ही ऋषि ने लाखो साधको को अध्यात्म पथ पर अग्रसर किया और आगे भी करेंगे। यही ऋषि वर्तमान की पृथ्वी के मास्टर्स की संसद अर्थात सप्तऋषियों में से एक है और वो ही उनके प्रमुख भी है। उन्होंने ने ही सतयुग में भी अपनी ऐसी ही भूमिका निभाई थी। उनकी द्रस्टव्य केवल एक ऋचा ही वेदो में प्राप्त होती है। दादागुरु अर्थात स्वयं परशुराम स्वयं सिद्ध है और युगपरिवर्तन के वर्तमान के दौर के महाकाल अर्थात प्रर्वर्तक स्वयं वो ही है। आज उनके स्थूल जन्मदिन पर इन सतयुग कालीन ऋषि को प्रणाम। #gurudevobservatory.co.in




No comments:
Post a Comment