क्लाइमेट चेंज को समाप्त करने का एकमात्र अमोघ उपचार :
मनुष्य की सुख पाने की अंधी दौड़ से पैदा हुई क्लाइमेट चेंज विश्व को समाप्ति के कगार पर ली गई है l लिख लीजिए कि अगर अब भी हमने कुछ नहीं किया तो इस सदी के अंत तक पूर्ण सजीव सृष्टी व वसुंधरा का निर्मम अंत हो जाएगा l इस युग के इस सबसे बड़े राक्षस को खत्म करने के लिए अब हमारे पास एकमात्र उपचार रह गया है l वह अमोघ हैl अगर यह भी हमने नहीं किया तो अब हमें समाप्त होने से और कोई नहीं रोक सकता ,स्वयं ईश्वर भी नहीं l यह स्वयंसिद्ध उपचार भी स्वयं वेद भगवान ने बताया है l और वह है : नित्य यज्ञ l वेदों में स्पष्ट रूप से सैकड़ों ऋचाओं में बताया गया है कि यज्ञ के द्वारा : प्रकृति शुद्ध होती है ,उसे पोषण मिलता है ,वृक्ष को पोषित किया जाता है ,प्रदूषण को नष्ट किया जाता है ,शक्ति का संवर्धन एवं बहुलीकरण होता है, फोटोसिंथेसिस प्रक्रिया शक्तिमान-ऊर्जावान हो जाती है, प्रकृति शांत और संतुलित होती है, सूर्य किरणों के साथ में यज्ञ ऊर्जा मिल कर के वसुंधरा और उसके ऊपर के चुंबकीय आवरण तक फैल जाती है -जिससे आयन मंडल ,चुंबकीय आवरण और वातावरण तीनों वापस सक्षम हो जाते हैं ,ओजोन लेयर वापिस बनता है ,कार्बन खत्म होते हुए ऑक्सीजन की मात्रा संतुलित हो जाती है , परक्यूलेट मैटर- प्रदूषण जीरो हो जाते हैं , पेयजल पूर्ण रूप से शुद्ध हो जाता है l यज्ञ ऊर्जा अन्यान्य ऊर्जा यथा इंद्र, पूषा, मित्र ,वरुण ,मरुत, सूर्य, चंद्र उषा ,भग, अग्नि को और भी ऊर्जावान बना देती है , जिसके चलते जड़ - चेतन दोनों पदार्थों में संतुलन पैदा हो जाता हैl यज्ञ के अलावा प्रकृति को संतुलित और शांत करने का और कोई भी उपचार अब शेष नहीं रहा है l विज्ञान के पास भी अब इस क्षेत्र में कोई उपचार शेष नहीं रहा है l
वेद काल में तीनों सवनो में यानी प्रातः ,मध्यान्ह एवं सायं काल में यज्ञ हुआ करते थे l आज हम एक समय भी नहीं कर पा रहे हैं l उस समय का पापुलेशन और पॉल्यूशन बहुत कम था फिर भी तीन समय यज्ञ होता था l आज हमारे युग में पॉपुलेशन ऑफ पोलूशन उस समय से लाखों गुना बढ़ गया है और यज्ञ लगभग नहीं के बराबर होता है ,तो प्रकृति माता शांत कैसे होगी ? अगर माता वसुंधरा को बचाना है तो परमेश्वर प्रदत वेद के इस एकमात्र उपचार, यज्ञ को हमें नित्य प्रति सघन प्रयोग के रूप में अपनाना ही पड़ेगा l न्यूनतम 1 करोड़ घरों में नित्य यज्ञ करने ही पड़ेंगे l
हमारे पास दो ही रास्ते हैं यज्ञ या अंत l किसे चुनना वह हम और हमारी प्रज्ञा पर निर्भर है l करें या मरे l अभी या कभी नहीं l दिव्यदर्शन पुरोहित ,गुरुदेव ऑब्जर्वेटरी ,गायत्री प्रज्ञापीठ, कारलीबाग ,वडोदरा l
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