Monday, May 28, 2018

आत्मीय मित्रो ,


युग ऋषि ने 40 के दशक में जो कहा था वो बिलकुल सच हो रहा है। ऋतुचक्र असंतुलन अपनी चरमसीमा पर है। भूकंप,सुनामी ,फ्लड ,स्टॉर्म ,ग्लेशियर्स पिघलन ,समंदर के प्रवाहो की गति में बदलाव,हवा के रुख में परिवर्तन ,एटमोस्फेरिक रिवर का बढ़ना ,भयकर हिट वेव का आना,ग्रीन हॉउस गैसेस का अत्यधिक बढ़ना  इत्यादि को सहजता से नहीं लेना चाहिए। जो 2050 में होने वाला था वो 2010  से सुरु हो गया है। प्रकृति माता के इस अप्रत्याशित बदलाव को अनदेखा करना यानि सामूहिक मृत्यु को निमंत्रण देना।


इन सबक पीछे हम मानव ही जिम्मेदार है। भौतिकता की अंधाधुंध दौड़ ने हमें मृत्योन्मुख खड़ा कर दिया है। वाहनों का बढ़ना ,कंस्ट्रंक्शन में बढ़ोत्तरी , तालाबों का पुराण ,वृक्षों का कटाव इत्यादि हमने ही तो किये है। हम हमारे बच्चो को क्या देंगे जवाब ?


गुरुदेव सब कर लेंगे ,भविष्य उज्जवल है ,देवता मदद करेंगे ,ईश्वर सर्व समर्थ है यह सोचना हमारी कायरता है। देवता तो गूंगे बहरे होते है ,वो केवल उनकी मदद करते है जो स्वयं खुद की करने को उतारू है। हमें ठोस प्रयास करने ही पड़ेंगे। जैसे की  ......


(1 ) वृक्षों का न केवल अंधाधुंध आरोपण अपितु उसका सरंक्षण व् उछेर करना।

(2 ) जल सरंक्षण,संवर्धन,तालाबों का निर्माण ,जलस्त्रोतों का रक्षण व् निर्माण।

(3 ) उद्योगगृहो को इनके लिए अपनी जिम्मेदारी निभाने तैयार करना। अपने बजट का 10 प्रतिशत इस कार्य में लगाने के लिए बाध्य करना। 

(4 ) सरकारों को इस कार्यो के ले लिए प्राथमिकता देनेको मजबूर करना। वोट उन्ही को जो पर्यावरण को ,प्रकृति माता को और मानव को बचाये।

(5 ) सौर ऊर्जा ,पवन ऊर्जा के साधनो को अत्यंत सस्ता करवाए और उसे घर घर पहुंचाए। सौरऊर्जा संचालित वाहनों को प्राथमिकता प्रदान की जाये। ऐसी खोजे हो जो इसे जनसुलभ बनाये।

(6 ) इसके ऊपर अवेरनेस फैलाते चले ,ख़ास करके नयी पीढ़ी तक उसे पहुंचाए।

(7 ) प्लास्टिक को कहे ना ,कागज -पानी -बिजली का करे न्यूनतम उपयोग और पुनःप्राप्य ऊर्जा को कहे हां ,वेलकम।


इस क्रम में....

(1 ) "धो शांति" वाले मन्त्र का उपगोड करे उसके आहुतिया नित्य प्रदान करे व वेदो से पर्यावरण रक्षा के मूल मंत्रो को खोजकर उसका प्रयोग करे जो सूक्ष्म जगत पर असर पैदा कर सके। पर ये उनको ही फलेंगे जो उपरोक्त कार्यो को कर रहे हो ,अन्यथा देवता भी गूंगे बहरे बने रहेंगे।

(2 ) "प्रकृति माता हो रही है शांत,संतुलित और शीतल " की भावना के साथ एक साथ ,एक समय करे सामूहिक ध्यान जैसा आज से ४५ साल पूर्व गुरुसत्ता ने स्काई लेब के लिए करवाया था।


यह लिखकर रखे की अगर हमने अभी कुछ नहीं किया तो "इक्कीसवी सदी उज्जवल भविष्य" को छोड़िये हम इक्कीसवी सदी का अंत भी नहीं देख पाएंगे। 

इसके साथ एक एटेचमेंट है जिसमे आप डिटेल्स पढ़ सकेंगे।


आशा है हम सब मिलकर गोवर्धन उठा सकेंगे। हमारे सूत्र होने चाहिए ,.... " अभी या कभी नहीं " , " करे या मरे " ...

इस सन्दर्भ में प्रश्नो के समाधान हेतु ,नवीनतम डाटास व् ग्राफ-पिक्चर्स के लिए मेरा संपर्क कर अनुग्रहित करे।


प्रणाम ,आपका भाई ,

दिव्यदर्शन डी पुरोहित


Divyadarshan D.Purohit
Gurudev Observatory,
Vadodara
India
http://www.gurudevobservatory.co.in/


 

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